अधूरी आज़ादी

10 September 2020

अधूरी आज़ादी

आज पतंग को उड़ते देखा, à¤¤à¥‹ रहा न गया, 

मैंने पूछ ही लिया, à¤•à¤¿à¤¤à¤¨à¥€ खुश होती होगी न तुम,

जब उड़ती हो इस कदर मदमस्त, à¤¬à¤¸ चल देती हो, 

जहां भी, à¤•à¤¹à¥€à¤‚ भी 

हवा के संग-संग, à¤²à¤¿à¤ कई रंग, à¤…पनाए अपना ढंग

पतंग मेरे क़रीब आई, à¤®à¤‚द मंद मुस्काई,

फिर कहने लगी हां, à¤–़ुश तो बहुत हूं मैं, 

उड़ सकती हूं, 

छू सकती हूं ऊंचाईयों को,

पर तुम मेरी तरह न उड़ना, 

कि उड़ रहे हैं आसमान में और डोर किसी और के हाथ में है । 

सोचने पर मजबूर मैं, 

कहने लगी अपने आप से, 

बात में दम है, 

आज़ादी अब भी कम है,

 à¤šà¤¾à¤¹à¤¿à¤ मुझे थोड़ा और,

 à¤¬à¤¾à¤¤ भी है करने की ग़ौर,

 à¤ªà¥ˆà¤®à¤¾à¤¨à¤¾ बदलने की ज़रूरत है, à¤®à¤¾à¤¯à¤¨à¥‹à¤‚ में तब्दीली ज़रूरी है ।

 à¤®à¥ˆà¤‚ भी छू जाऊं आकाश,

 à¤²à¤¿à¤ अपना दृष्टिकोण, à¤…पनी आवाज़ 

आखिर इसके बिना आज़ादी अधूरी है ।

 

By: Dr. Venu Sharma

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Dr. Venu Sharma is from Mandsaur. She loves to teach, read, and write.



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